प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को हमारे सबसे प्राचीन धार्मिक शहरों में से एक उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परियोजना का उद्घाटन करेंगे। यह एक सभ्यता के धनी देश के रूप में भारत की यात्रा में एक महत्वपूर्ण घटना है। अब आपका सवाल होगा कि इसकी वजह क्या है? हम आपको दो कारण बता रहे हैं:
पहला कारण आस्था और भक्ति से जुड़ा है। महाकालेश्वरजी भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित महान ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां लाखों भक्त महादेव का दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर अतीत में आक्रमणकारियों की तोड़फोड़ का भी शिकार हो चुका है। अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ, जब इसके आसपास अवैध अतिक्रमण नजर आते थे। स्कंद पुराण में मंदिर के करीब रुद्रसागर झील का उल्लेख है, जो सिकुड़कर एकदम सीवेज डंप बन गई थी|
लेकिन, अब इस महान मंदिर का कायाकल्प हो गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने स्थानीय लोगों के साथ विचार-विमर्श करके अतिक्रमण को शांतिपूर्वक हटा दिया। उन्हें उचित मुआवजा भी दिया गया। यहां के लोगों की भी समझ में आ गया कि मंदिर का पुनरुद्धार होने से यहां की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। उनकी दुकानें और होटल ज्यादा चलेंगे। अगर शहर के बीचोबीच देखें, तो श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई उपाय किए गए हैं। मसलन- ट्रैफिक सिस्टम को बेहतर किया गया। पार्किंग और सिक्योरिटी पर भी अच्छा काम हुआ। सौंदर्यीकरण भी लाजवाब है। ई-रिक्शा जैसे ट्रांसपोर्ट के साधन सड़कों को प्रदूषण से बचाने में मदद करते हैं। वहीं, बिजली की मांग सोलर पैनल से पूरी होती है।
मैं एक पखवाड़े पहले वहां गया था और मुझे महसूस हुआ कि मंदिर के अंदर भी काफी शानदार बदलाव किया गया है। चारो ओर भगवान शिव की कहानियां दर्शाने के लिए सुंदर पैनल हैं। भगवान शिव और देवी पार्वती की अपने बच्चों यानी गणेश और कार्तिकेय के साथ वाली जीवंत मूर्तियां सीधे आपके दिल में उतर जाएंगी। शिव-पार्वती विवाह, त्रिपुरासुर वध, तांडव स्वरूप और सप्तऋषियों की मूर्तियां आपको एक रहस्यमय दुनिया में ले जाती हैं। रुद्रसागर झील को उसका पुराना रूप वापस मिल गया है, पवित्र शिप्रा नदी के पानी के साथ। श्रद्धालुओं के लिए तमाम आधुनिक सुविधाएं भी हैं। इसे आप भक्ति का पुनर्जागरण कह सकते हैं|
उज्जैन का यह विश्व विख्यात मंदिर भगवान शिव के महाकालेश्वर रूप का है, जो समय के भगवान हैं। प्राचीन काल में उज्जैन का नाम अवंति था। यह नगर वैज्ञानिक अनुसंधान का एक प्राचीन केंद्र था। वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य जैसे प्रसिद्ध गणितज्ञों और खगोलविदों ने भारत के अलग-अलग हिस्सों से आकर उज्जैन को अपनी कर्मस्थली बनाया। इस शहर को प्रधान मध्याह्न रेखा यानी प्राइम या जीरो मेरिडियन का घर माना जाता था। इसे प्राचीन भारतीय गणितज्ञ समय की गणना के लिए रेफरेंस पॉइंट मानते थे। पृथ्वी पर 0° देशान्तर पर खींची गई मध्याह्न रेखा प्रधान मध्याह्न रेखा या ग्रीनविच रेखा होती है। दुनिया का मानक समय इसी रेखा से निर्धारित किया जाता है। लंदन का ग्रीनविच शहर इसी रेखा पर है, इसलिए इसे ग्रीनविच रेखा भी कहते है। वैसे अब ग्रीनविच को ही प्रधान मध्याह्न रेखा माना जाता है|
ज्योतिषी उज्जैन को वह जगह भी मानते थे, जहां कर्क रेखा मध्याह्न रेखा से मिलती है। यहां साल के सबसे लंबे दिन यानी ग्रीष्म संक्रांति के दौरान दोपहर में सूर्य ऊपर की ओर होते हैं। इसी दिन से सूर्य दक्षिणायन होते हैं यानी दक्षिण की यात्रा शुरू करते हैं। इसलिए यह समय की गणना के लिए बेहतरीन स्थान था। ऐसे में हैरानी की कोई बात नहीं कि इस नगरी को दुनिया की नाभि कहा जाता था। हिंदू चंद्र-सौर पंचांग अभी भी उज्जैन को प्रधान मध्याह्न रेखा मानते हैं। अधिकतर हिंदू लोग पंचांग के हिसाब से शुभ-अशुभ का विचार करते हैं, उसी के हिसाब से व्रत-त्यौहार मानते-मनाते हैं।
प्राचीन काल में ग्रीष्म संक्रांति पर सूर्य की किरणें सीधे भव्य महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर पड़ती थीं। यह अब पास के मंगल मंदिर की ओर मुड़ चुकी होंगी। यह पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने की वजह से हुआ होगा। स्कूल में तो हमें पढ़ाया ही गया है, ‘धरती अपनी धुरी पर घूमती है।’ अब मंदिर परिसर में ऊर्जा का नए सिरे से संचार हो रहा है। इससे हो सकता है कि प्राचीन विज्ञान का भी पुनरुद्धार हो जाए और उसके बारे में बताने वाले हमारे प्राचीन ग्रंथ भी हमें मिल जाए। अगर हमें अपने पुरखों की वह अनमोल धरोहर मिल जाए, तो हमारे अद्भुत राष्ट्र का भविष्य और भी सुनहरा हो सकता है।
(अमीश और भावना मशहूर लेखक हैं; उनकी सबसे नई किताब ‘धर्म’ है।)